डेयरी पशुओं में होने वाले प्रमुख रोग एवं उनके उपचार
डेयरी व्यवसाय या पशुपालन से जुड़े व्यक्ति को पशुओं के कुछ सामान्य रोगों के बारे में पता होना चाहिए| इस पोस्ट में हम आपको पशुओं में होने वाले एक प्रमुख रोग “छेरा रोग” के बारे में बताएँगे| साथ ही आप जानेंगे की इस रोग के उपचार क्या हैं? और पशुओं को इस रोग के होने से कैसे बचाया जा सकता है?
छेरा रोग क्या है?(What is Fascioliasis disease?)

छेरा रोग (Fascioliasis disease) पशुओं में परजीवी (Parasite) से होने वाली बीमारी है। यह बीमारी (लिवर-फ्लूक तथा फैसिओला/Fasciola gigantica) नामक पैरासाइट से होती है। ये दोनों परजीवी(parasites) अपने जीवन का कुछ समय नदी, तलाब, पोखर आदि में पाये जाने वाले घोंघा में व्यतीत करते है और शेष समय पशुओं के liver में। घोंघा से निकलकर इस परजीवी के र्लावा नदी, पोखर, तालाब के किनारे वाले घास की पत्तियों पर लटके रहते है। पशु जब इस घास को खाते है, तो ये परजीवी पशुओं के शरीर में प्रवेश कर जाते है। शरीर के विभिन्न आंतरिक अंगों में भ्रमण करते हुए अंततः ये अपना स्थान पशु के लीवर तथा पित्त की थैली (Gallbladder) में बना लेते हैं। पशुओं का लीवर जैसे-जैसे प्रभावित होता है, वैसे-वैसे रोग के लक्षण प्रकट होते जाते है।
फ़ैसिओलिसीस जीवन चक्र (Fascioliasis life cycle)
जैसा की आप ऊपर के चित्र में देख सकते हैं की किस तरह एक फ़ैसिओलिसीस परजीवी का विकास होता है और कैसे वह पशु के शरीर में पहुंचकर नुकसान पहुंचता है|
छेरा रोग के लक्षण
* आमतौर पर इस रोग का पहला लक्षण बुखार है; पशु को 40-42 डिग्री सेल्सियस यानी (104-108 FH) तक बुखार हो सकता है|
* पेट में दर्द
* भूख ना लगाना
* शरीर का कमजोर होते जाना
* कभी-कभी बदबूदार बुलबुले के साथ पतला दस्त होना
* उठने में कठिनाई होना
* दूध उत्पादन क्षमता का कम होना
* इस रोग से प्रभावित पशु का समय पर उचित इलाज न होने पर मृत्यु भी हो सकती है
छेरा रोग के उपचार ( Fascioliasis Disease Treatment)
• शुरू से ही सतर्कता बरतने पर पशु आसानी से ठीक हो जाते हैं।
• इस रोग में पशु का tri-cla-bendazole नामक दवाई से उपचार किया जाता है| जो पशुचिकित्सक द्वारा दिया जाता है|
जैसे ही पशु में छेरा रोग रोग के लक्षण प्रकट हो उसे तुरंत पशु चिकित्सक को दिखाना चाहिए | समय रहते इलाज करने से पशु ठीक हो जाते हैं |
बचाव / इसे कैसे रोकें? (Fascioliasis Disease Prevention)
* उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों (नदी, तलाब, पोखर आदि) की पहचान करें जहाँ घोंघे होने की संभावना अधिक हो और वहां से पशु को ना चराएँ या घास ना लायें| बाढ़ प्रभावित तथा जल जमाव वाले क्षेत्रों के पशुपालकों को इस रोग से अधिक सतर्क रहने की जरूरत है।
नीचे दिया गया विडियो जरुर देखें, विडियो देखकर ही आप इसके बारे में अच्छे से समझ पाएंगे
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